अवंतिका-अर्जुन
हेल्लो अर्जुन दरवाजा तो खोलो यार तब से डोरवेल बजा रही हूँ सुनाई नहीं दे रहा है क्या?
आ गयी क्या?
नहीं रास्ते में हूँ!! जल्दी खोलो दरवाजा।
एक मिनट रुक खोल रहा हूँ।
कान में रुई डाल के सो रहे थे क्या?
नहीं यार अवनि रात गाना सुनते-सुनते कब नींद आ गया पता ही नहीं चला।इयरफोन कान में ही लगा हुआ रह गया था और अभी तक गाना बज ही रहा था इसलिए सुनाई नहीं दिया।
अच्छा जी!! वैसे सन्डे केवल सोने के लिये ही होता है क्या? ये नहीं की सुबह नहा के मंदिर घूम आओ या फिर टहलने ही चले जाओ।
तू तो जानती ही है भगवान से अपनी पटती नहीं है और मैं पूरी तरह फिट हूँ सो टहलने की भी जरूरत नहीं।
हाँ वो तो दिख ही रहा है कितने फिट हो।
अच्छा अब सुबह-सुबह ज्ञान मत दे और बता कैसी है?
मैं तो ठीक हूँ पर उफ़्फ़ ये रूम की क्या हालत बना रखे हो।चलो अब चुप-चाप एक कोने में खड़े रहो जब तक मैं रूम साफ़ न कर दूँ।
जी मैडम।
एक साथ इतनी सारी नोवेल्स पढ़ते हो क्या जो सब को बिखेर के रखे हुये हो।
नहीं एक ये वाला तो अभी पढ़ रहा हूँ।बाकि जिसमे कोई अच्छा सिन याद आ जाता है उसको निकाल के पढ़ लेता हूँ।
और वापस रखने के लिये मैं हूँ ही!?
हाहाहा हाँ वो तो ही...
अच्छा इन पुरानी जीन्स को किसी को दे क्यों नहीं देते ऐसे रखे-रखे और ख़राब हो रही है।
हर जीन्स के साथ कोई याद जुडी हुयी है डिअर।
अच्छा जी!!! पर सीरियसली यार किसी जरुरतमन्द को दे दो क्या पता इसके साथ उसकी भी कोई याद जुड़ जाये।
दे तो मैं भी देना चाहता हूँ यार लेकिन ऐसे कोई किसी को कैसे बोल सकता है की ये लो जी ये हमारी पुरानी जीन्स है अब इसे आप रख लो।बहुत संकोच होता है यार ऐसे बोलते।
अच्छा बस इत्ती सी बात है। तुमने नेकी की दिवार के बारे में सुना है?
नही। ये क्या है?
पता है इसकी शुरुआत ईरान के एक शहर से हुयी थी।वहाँ कुछ लोगों ने एक दिवार के ऊपर लिख दिया नेकी की दिवार और साथ में लिख दिया जिनके पास जरूरत से ज्यदा है यहाँ रख जाएँ और जिनको जरूरत है वो अपनी जरूरत का सामान ले जायें।इससे वहाँ के बहुत सारे जरूरतमंद लोगोँ को मदद मिली।
ये तो वाकई यार बहुत ही अच्छा कांसेप्ट है।अगर सही से इस पर अमल हो तो पूरी दुनिया से गरीबी एक छटके में खत्म हो जायेगी।
पूरी दुनिया की गरीबी खत्म होने की बात तो नहीं बोल सकती लेकिन एक शुरुआत तो हो ही गयी है।
हाँ किसी भी काम का शुरू होना ज्यदा जरुरी है। अच्छा अपने शहर में भी है क्या कोई ऐसी दिवार।
और क्या अब तो अपने भी देश में हर छोटे बड़े शहर में इस नेकी की दिवार के शुरुआत हो गयी है।
और अपने पटना शहर में भी काफी जगह पे है ये।पता है इस सर्दी के मौसम में काफी closely follow की इसे मैं।बहुत सारे लोगों ने कम्बल और गरम कपडे रखे उधर और बहुत सारे जरूरतमंद लोगों को मदद भी मिली इससे।
जानती है मेरे ख्याल से इसकी सबसे बड़ी खासियत क्या है?
क्या है..?
इसमें न देने वाले को संकोच होता होगा न ही लेने वाले को एहसानमंद।
सही कहा तुमने।
वैसे ये है कहाँ पे?
एक तो तुम्हारे ऑफिस जाने के रुट में ही है जब गांधी मैदान से बोरिंग रोड के लिए जाते हो तो बाँसघाट के पास वाले पार्क के दिवार पर है।
अच्छा!! ध्यान नहीं दिया कभी।
हाँ हाँ तुम्हारा ध्यान तो केवल स्कूटी पे होता है ये सब कहाँ से दिखेगा तुम्हे।
अच्छा जी! सही में क्या?
और क्या! अच्छा मैं इन जीन्स को धो देती हूँ कल ऑफिस जाते वक्त इन्हें वहाँ ड्रॉप कर देना याद से।
ठीक है मैडम कर देंगे और कुछ?
और कुछ नहीं अब जल्दी से फ्रेश हो जाओ तब तक मैं ब्रेड-ऑमलेट बना देती हूँ खा के फिर चलेंगे कहीं घुमाने।लंच उधर ही कर लेंगे।
ठीक है अच्छा सुन एक शर्ट-जीन्स अलमारी में पड़ा हुआ है जरा उसको प्रेस कर दे।
जी मालिक कर देती हूँ
और हाँ मोबाइल भी थोडा चार्ज में लगा दे।
जी मालिक लगा देती हूँ और कुछ...
और.......
और अब बस कुछ काम खुद भी कर लिया करो।
करता हूँ न मंडे टू सैटरडे।
हाँ वो तो दिखता ही है अलबेले अर्जुन!
और क्या ड्रामेबाज अवंतिका।
हेल्लो अर्जुन दरवाजा तो खोलो यार तब से डोरवेल बजा रही हूँ सुनाई नहीं दे रहा है क्या?
आ गयी क्या?
नहीं रास्ते में हूँ!! जल्दी खोलो दरवाजा।
एक मिनट रुक खोल रहा हूँ।
कान में रुई डाल के सो रहे थे क्या?
नहीं यार अवनि रात गाना सुनते-सुनते कब नींद आ गया पता ही नहीं चला।इयरफोन कान में ही लगा हुआ रह गया था और अभी तक गाना बज ही रहा था इसलिए सुनाई नहीं दिया।
अच्छा जी!! वैसे सन्डे केवल सोने के लिये ही होता है क्या? ये नहीं की सुबह नहा के मंदिर घूम आओ या फिर टहलने ही चले जाओ।
तू तो जानती ही है भगवान से अपनी पटती नहीं है और मैं पूरी तरह फिट हूँ सो टहलने की भी जरूरत नहीं।
हाँ वो तो दिख ही रहा है कितने फिट हो।
अच्छा अब सुबह-सुबह ज्ञान मत दे और बता कैसी है?
मैं तो ठीक हूँ पर उफ़्फ़ ये रूम की क्या हालत बना रखे हो।चलो अब चुप-चाप एक कोने में खड़े रहो जब तक मैं रूम साफ़ न कर दूँ।
जी मैडम।
एक साथ इतनी सारी नोवेल्स पढ़ते हो क्या जो सब को बिखेर के रखे हुये हो।
नहीं एक ये वाला तो अभी पढ़ रहा हूँ।बाकि जिसमे कोई अच्छा सिन याद आ जाता है उसको निकाल के पढ़ लेता हूँ।
और वापस रखने के लिये मैं हूँ ही!?
हाहाहा हाँ वो तो ही...
अच्छा इन पुरानी जीन्स को किसी को दे क्यों नहीं देते ऐसे रखे-रखे और ख़राब हो रही है।
हर जीन्स के साथ कोई याद जुडी हुयी है डिअर।
अच्छा जी!!! पर सीरियसली यार किसी जरुरतमन्द को दे दो क्या पता इसके साथ उसकी भी कोई याद जुड़ जाये।
दे तो मैं भी देना चाहता हूँ यार लेकिन ऐसे कोई किसी को कैसे बोल सकता है की ये लो जी ये हमारी पुरानी जीन्स है अब इसे आप रख लो।बहुत संकोच होता है यार ऐसे बोलते।
अच्छा बस इत्ती सी बात है। तुमने नेकी की दिवार के बारे में सुना है?
नही। ये क्या है?
पता है इसकी शुरुआत ईरान के एक शहर से हुयी थी।वहाँ कुछ लोगों ने एक दिवार के ऊपर लिख दिया नेकी की दिवार और साथ में लिख दिया जिनके पास जरूरत से ज्यदा है यहाँ रख जाएँ और जिनको जरूरत है वो अपनी जरूरत का सामान ले जायें।इससे वहाँ के बहुत सारे जरूरतमंद लोगोँ को मदद मिली।
ये तो वाकई यार बहुत ही अच्छा कांसेप्ट है।अगर सही से इस पर अमल हो तो पूरी दुनिया से गरीबी एक छटके में खत्म हो जायेगी।
पूरी दुनिया की गरीबी खत्म होने की बात तो नहीं बोल सकती लेकिन एक शुरुआत तो हो ही गयी है।
हाँ किसी भी काम का शुरू होना ज्यदा जरुरी है। अच्छा अपने शहर में भी है क्या कोई ऐसी दिवार।
और क्या अब तो अपने भी देश में हर छोटे बड़े शहर में इस नेकी की दिवार के शुरुआत हो गयी है।
और अपने पटना शहर में भी काफी जगह पे है ये।पता है इस सर्दी के मौसम में काफी closely follow की इसे मैं।बहुत सारे लोगों ने कम्बल और गरम कपडे रखे उधर और बहुत सारे जरूरतमंद लोगों को मदद भी मिली इससे।
जानती है मेरे ख्याल से इसकी सबसे बड़ी खासियत क्या है?
क्या है..?
इसमें न देने वाले को संकोच होता होगा न ही लेने वाले को एहसानमंद।
सही कहा तुमने।
वैसे ये है कहाँ पे?
एक तो तुम्हारे ऑफिस जाने के रुट में ही है जब गांधी मैदान से बोरिंग रोड के लिए जाते हो तो बाँसघाट के पास वाले पार्क के दिवार पर है।
अच्छा!! ध्यान नहीं दिया कभी।
हाँ हाँ तुम्हारा ध्यान तो केवल स्कूटी पे होता है ये सब कहाँ से दिखेगा तुम्हे।
अच्छा जी! सही में क्या?
और क्या! अच्छा मैं इन जीन्स को धो देती हूँ कल ऑफिस जाते वक्त इन्हें वहाँ ड्रॉप कर देना याद से।
ठीक है मैडम कर देंगे और कुछ?
और कुछ नहीं अब जल्दी से फ्रेश हो जाओ तब तक मैं ब्रेड-ऑमलेट बना देती हूँ खा के फिर चलेंगे कहीं घुमाने।लंच उधर ही कर लेंगे।
ठीक है अच्छा सुन एक शर्ट-जीन्स अलमारी में पड़ा हुआ है जरा उसको प्रेस कर दे।
जी मालिक कर देती हूँ
और हाँ मोबाइल भी थोडा चार्ज में लगा दे।
जी मालिक लगा देती हूँ और कुछ...
और.......
और अब बस कुछ काम खुद भी कर लिया करो।
करता हूँ न मंडे टू सैटरडे।
हाँ वो तो दिखता ही है अलबेले अर्जुन!
और क्या ड्रामेबाज अवंतिका।
नोट-आप भी जुड़िये इस नेकी की दिवार से।शायद आप के लिये बेकार होगयी चीज़ भी किसी की जरूरत पूरी कर सकती है।
अगले सन्डे जानिए क्यों परेशान है मौर्या जी और उनकी बेटी अपने स्वच्छ भारत मुहीम को ले कर अवंतिका-अर्जुन के खांटी रोमांटिक अंदाज में।
अरुण यादव